An emperor…

इक शहंशाह ने…

-प्रा. आय. जी. शेख ताजमहल ताज तेरे लिए इक मज़हर-ए-उल्फ़त ही सही  तुझ को इस वादी-ए-रंगीं से अक़ीदत ही सही  मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझ से  बज़्म-ए-शाही में…

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